नाजायज़
ज़िन्दगी से चुराएं कुछ पल
बस यूँही ख़त्म हो गयें...
अब तो कर्जदार बन गयें हैं...
कुछ पलों के, कुछ यादों के...!
क्या यही ज़िन्दगी मिली
या ज़िन्दगी से माँगा था...
हम तो मोहताज़ थे
अपनी ही खुशियों के लिए,
यही तो ज़िन्दगी थी
या ज़िन्दगी ने दियें...!
वक़्त पर पीछे मुड्नेपर
जीत तो होनी ही थी...
पर कुछ पल ही हम पर उधार थे
जो ऐसे ही ग़ुम हो गयें...!
अब तो ऐसी ज़िन्दगी पर
कुछ कुछ घमंड सा होने लगा है..
बस ख़ुशी तो यही है
की किसीने हमारे उन पलीं को नाजायज़ कह कर,
दूर तो नहीं किया...!!!

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